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सस्कृत व्याकरण विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है संस्कृत व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं। Sanskrit Vyakaran RBSE Class 6 to10 तक कक्षाओं का व्यवहारिक ज्ञान हिंदी भाषा में प्रदान करता हू
जिन स्वरों के उच्चारण में मूल स्वरों की अपेक्षा तीन गुना समय या तीन मात्राओं का समय लगता है, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। प्लुत का ज्ञान कराने के लिए ३ का अंक स्वर के आगे लगाते हैं, जैसे- अ३, इ३, उ३, ऋ३, लृ३, ए३, ऐ३, ओ३, औ३ आदि।
2. व्यञ्जनकीपरिभाषा -
व्यञ्जन-(येषां वर्णानाम् उच्चारणंस्वरेण सहाय्येन भवति ते व्यञ्जनानि कथ्यन्ते।) जोस्वरोंकीसहायतासेबोलेजातेहैं, उसेव्यञ्जनकहतेहैं।
इसका उच्चारण नासिका से ही होता है। यह हमेशा स्वर के बाद ही आता है। ये वर्ण संस्कृत भाषा में दो प्रकार के होते हैं- (क) अनुस्वार, (ख) विसर्ग।
(क) अनुस्वार – यह किसी भी स्वर के बाद ‘न् या म्’ के स्थान पर आता है, जैसे- सः गृहं गच्छति। ‘गृहम्’ के ‘म्’ के स्थान पर ऊपर बिंदु (ं) का प्रयोग हुआ है।
(ख) विसर्ग (:) – विसर्ग का प्रयोग स्वर के बाद होता है। इसका उच्चारण ह् के समान किया जाता है, जैसे- बालकः, वृक्षः आदि।
संयुक्त व्यंजन
दो व्यंजनों के संयोग से बने वर्ण को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। जैसे-
क् + ष् + अ = क्ष
ज् + ञ् + अ = ज्ञ
त् + र् + अ = त्र
श् + र् + अ = श्र
वर्गोंकेउच्चारणस्थान
वर्गोंकेउच्चारणस्थानआठहोतेहैं-
(1) कण्ठ
(2) तालुः
(3) मूर्धा
(4) दन्त्य (दन्ताः)
(5) ओष्ठौ
(6) नासिका
(7) जिह्वामूलम्
(8) उरः
वर्णउच्चारणंस्थान (वर्णानाम्उच्चारणस्थानानि)
१ अ्क्ख्ग्घ्ङ् ह्विसर्ग (:) कण्ड:
२.इ्च्छ्ज्झ्ञ्य्श् - तालुः
३. ऋट्ठ्ड्ढ्ण, र् ष्मूर्धाः
४. लृत्थ्द् ध्न्लस्दन्ताः
५. उप्फ्ब्भ्म् -औष्ठो
६. इ ञ् ण्न्म् –नासिका
७. अनुस्वार (•)नासिका
८. व्कारका -दन्तौष्ठ
९. एऐ -कण्ठ-तालु
10. ओऔ - कण्ठौष्ठम्
11. कख -जिह्वामूलम्
वर्णों के उच्चारण स्थान
कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, नासिका, ओष्ठ आदि को वर्णों का उच्चारण स्थान कहते हैं। वर्णों का उच्चारण करने के लिए फेफड़ों से निकली निःश्वास वायु इन स्थानों को स्पर्श करती है। जिस वर्ण को मुख के जिस अंग की सहायता से बोला जाता है, उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं। कुछ वर्णों का उच्चारण एक साथ दो स्थानों से भी होता है। वर्णों के उच्चारण स्थानों का विभाजन निम्न रूप से किया गया है-
कण्ठ – ‘अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः’ अर्थात् अकार (अ, आ), क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) और विसर्ग (:) का उच्चारण स्थान कण्ठ होता है। कण्ठ से उच्चारण किये गये वर्ण ‘कन्ठ्य’ कहलाते हैं।)
तालु – ‘इचुयशानां तालु’ अर्थात् इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्), य् और श् का उच्चारण स्थान तालु है। तालु से उच्चारित वर्ण ‘तालव्य’ कहलाते हैं।
मूर्धा – ‘ऋटुरषाणां मूर्धा’ अर्थात् ऋ, ॠ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्), र् और ष् का उच्चारण स्थान मूर्धा है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘मूर्धन्य’ कहे जाते हैं।
ओष्ठौ – ‘उपूपध्मानीयानामोष्ठौ’ अर्थात् उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ, म्) तथा उपध्मानीय (प, फ) का उच्चारण स्थान ओष्ठ होते हैं। ये वर्ण ‘ओष्ठ्य’ कहलाते हैं।
दन्तः – ‘लृतुलसानां दन्ताः’ अर्थात् लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्), ल् और स् का उच्चारण स्थान दन्त होता है। दन्तर स्थान से उच्चारित वर्ण ‘दन्त्य’ कहलाते हैं।
नासिका – (1) ‘ञमङ्णनानां नासिका च’ अर्थात् ङ्, ञ्, ण्, न्, म् तथा अनुस्वार का उच्चारण स्थान नासिका है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘नासिक्य’ कहलाते हैं।
(2) नासिकाऽनुस्वारस्यं – अर्थात् अनुस्वार (ं) का उच्चारण स्थान नासिका है।
कण्ठतालु – ‘एदैतोः कण्ठतालु’ अर्थात् ए तथा ऐ का उच्चारण स्थान कण्ठतालु होता है। अत: ये वर्ण ‘कण्ठतालव्य’ कहे जाते हैं। अ, इ के संयोग से ए तथा अ, ए के संयोग से ऐ बनता है।
कण्ठोष्ठम् – ‘ओदौतोः कण्ठोष्ठम्’ अर्थात् ओ तथा औ का उच्चारण स्थान कण्ठोष्ठ होता है। अ + उ = ओ तथा अ + ओ = औ बनते हैं। अत: ये वर्ण कंठोष्ठ्य कहे जाते हैं।
दन्तोष्ठम् – ‘वकारस्य दन्तोष्ठम्’ अर्थात् व् का उच्चारण स्थान दन्तोष्ठ होता है। इस कारण ‘व्’ ‘दन्तोष्ठ्य’ कहलाता है। इसका उच्चारण करते समय जिह्वा दाँतों का स्पर्श करती है तथा ओष्ठ भी कुछ मुड़ते हैं।
जिह्वामूलम् – ‘जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम्’ अर्थात् जिह्वामूलीय (क, ख) का उच्चारण स्थान जिह्वामूल होता है।
उच्चारणस्थानबोधकचक्र
उच्चारण स्थान
स्वर
स्पर्श व्यंजन
अंतःस्थ व्यंजन
ऊष्म व्यंजन
अयोगवाह
संज्ञा
कंठ
अ, आ
क्, ख्, ग्, घ्, ङ्
–
–
:
कन्ठ्य
तालु
इ, ई
च्, छ्, ज्, झ्, ञ्
य्
श्
–
तालव्य
मूर्धा
ऋ, ॠ
ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्
र्
ष्
–
मूर्धन्य
ओष्ठौ
उ, ऊ
प्, फ्, ब्, भ, म्
–
–
प, फ
ओष्ठ्य
दन्तः
लृ
त्, थ्, द्, ध्, न्
ल्
स्
–
दन्त्य
नासिका
–
ङ्, ञ्, ण्, न्, म्
–
–
ं, ँ
नासिक्य
कण्ठतालु
ए, ऐ
–
–
–
–
कण्ठतालव्य
कण्ठोष्ठम्
ओ, औ
–
–
–
–
कंठोष्ठ्य
दन्तोष्ठम्
–
–
–
व्
–
दन्तोष्ठ्य
जिह्वामूलम्
–
–
–
–
क, ख
जिह्वामूलीय
class 10 sanskrit varn vichar Typed text notes
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