class 10 sanskrit varn vichar full chapter notes

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Class 10 sanskrit chapter 1 varna vichar notes handwriting and typed

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सस्कृत व्याकरण विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है संस्कृत व्याकरण का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं। Sanskrit Vyakaran RBSE Class 6 to10 तक कक्षाओं का व्यवहारिक ज्ञान हिंदी भाषा में प्रदान करता हू

संस्कृत वर्ण विचार👇नोट्स सुरु

संस्कृत वर्ण विचार  

वर्ण:ध्वनि की सबसे छोटी इकाई को वर्ण कहते हैंअर्थात् वर्ण का सूक्ष्म रूप ध्वनि है।

वर्ण के भेद- 

संस्कृत में वर्ण के दो भेद होते हैं
  1.  स्वर या अच् वर्ण 
  2. व्यंजन या हल् वर्ण
 
      1. स्वर की परिभाषा -
(स्वरा :- येषां वर्णानाम् उच्चारणं स्वतन्त्रतया भवति थे स्वरा: कथ्यते।) 

स्वर  जो वर्ण किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना ही बोले जाते हैं, उन्हें स्वर कहते हैं।
🌟संस्कृत में स्वरों की संख्या 13 मानी गई है, जिसमें 5 मूल स्वर हैं – अ, इ, उ, ऋ, लृ और अन्य 8 स्वर हैं – आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

स्वरों का वर्गीकरण 
स्वर के तीन भेद होते हैं
  1. हृस्व स्वर (ह्स्व स्वरा:)
  2. दीर्घ स्वर (दीर्घ स्वरा:)
  3. प्लुत स्वर।
हस्व स्वर– ( एते एकमात्राकालेन उच्चार्यामाणाह्स्व स्वर वह है जो कम समय में तथा ऊँचे स्वर में बोला जाता है। ये पाँच होते हैं।
 जैसे-लृ
क् +  = 
क् +  = का
क् +  = कि
क् +  = कु
क् +  = कृ
ल् +  = लृ

दीर्घ स्वर ( एतेद्विमात्राकालेन उच्चार्यामाणाजिस स्वर में ऊँचा स्वर और लम्बा समय लगता हैउसे दीर्घ स्वर कहते हैं
 = कृ

प्लुत स्वर-
जिन स्वरों के उच्चारण में मूल स्वरों की अपेक्षा तीन गुना समय या तीन मात्राओं का समय लगता है, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। प्लुत का ज्ञान कराने के लिए ३ का अंक स्वर के आगे लगाते हैं, जैसे- अ३, इ३, उ३, ऋ३, लृ३, ए३, ऐ३, ओ३, औ३ आदि।


2. व्यञ्जन की परिभाषा -
व्यञ्जन-(येषां वर्णानाम् उच्चारणं स्वरेण सहाय्येन भवति ते व्यञ्जनानि कथ्यन्तेजो स्वरों की सहायता से बोले जाते हैंउसे व्यञ्जन कहते हैं।
जैसे (क् +  = )

व्यञ्जन का वर्गीकरण 

व्यंजन तीन प्रकार के होते हैं

  1. स्पर्श व्यंजन
  2. अन्त:स्थ व्यंजन
  3. ऊष्म व्यंजन

स्पर्श व्यंजन जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी जिह्वाकण्ठ-तालुमर्धा आदि स्वर तन्त्रियों का स्पर्श करती है।
(पञ्चवर्गानां पञ्चविंशति व्यञ्जनानि वर्गीय व्यञ्जनानि कथ्यन्ते
स्पर्श व्यंजन की संख्या 25 होती हैं
वर्गवर्ण
‘क’ वर्ग कुक्, ख्, ग्, घ्, ङ्
‘च’ वर्ग चुच्, छ्, ज्, झ्, ञ्
‘ट’ वर्ग टुट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्
‘त’ वर्ग तुत्, थ्, द्, ध्, न्
‘प’ वर्ग पुप्, फ्, ब्, भ, म्
प्रत्येक वर्ग के अंतिम वर्ण ङ्, ञ्, ण्, न्, म् को अनुनासिक भी कहा जाता है, क्योंकि इनका उच्चारण मुख के साथ नासिका से भी होता है।

अन्तःस्थ व्यञ्जन जिन वर्गों के उच्चारण में हमारी जिह्वा कण्ठ आदि स्वर तन्त्रियों का थोड़ा स्पर्श करती है
अनवरत:स्थ व्यंजन की संख्या 4 होती है (चत्वारि अन्तस्थवर्णानि)
 व्र् ल्

ऊष्म व्यञ्जन- जिनके उच्चारण करने में स्वर तन्त्रियों से ऊष्म वायु रगड़कर बाहर निकलती है।
(चत्वारि ऊष्म वर्णानि)
ऊष्म व्यंजन की संख्या 4 होती है
श्ष्स्ह् 
स्वर - 13 होते हैं
,,,,,,,,,,,अं,:
व्यंजन - 33/46 वर्णों की वर्णमाला होती है।

अयोगवाह वर्ण 
इसका उच्चारण नासिका से ही होता है। यह हमेशा स्वर के बाद ही आता है। ये वर्ण संस्कृत भाषा में दो प्रकार के होते हैं- (क) अनुस्वार, (ख) विसर्ग।

(क) अनुस्वार – यह किसी भी स्वर के बाद ‘न् या म्’ के स्थान पर आता है, जैसे- सः गृहं गच्छति। ‘गृहम्’ के ‘म्’ के स्थान पर ऊपर बिंदु (ं) का प्रयोग हुआ है।

(ख) विसर्ग (:) – विसर्ग का प्रयोग स्वर के बाद होता है। इसका उच्चारण ह् के समान किया जाता है, जैसे- बालकः, वृक्षः आदि।

संयुक्त व्यंजन 
दो व्यंजनों के संयोग से बने वर्ण को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। जैसे-
क् + ष् + अ = क्ष
ज् + ञ् + अ = ज्ञ
त् + र् + अ = त्र
श् + र् + अ = श्र

वर्गों के उच्चारण स्थान
वर्गों के उच्चारण स्थान आठ होते हैं-
(1) कण्ठ
 (2) तालुः
(3) मूर्धा
(4) दन्त्य (दन्ताः)
(5) ओष्ठौ
(6) नासिका
 (7) जिह्वामूलम्
(8) उरः

वर्ण उच्चारणं स्थान (वर्णानाम् उच्चारणस्थानानि)
१ अ् क् ख् ग् घ् ङ् ह् विसर्ग (:)  कण्ड:
२. इ् च् छ् ज् झ् ञ् य् श् -       तालुः
 ट् ठ् ड् ढ् र् ष्           मूर्धाः
लृ त् थ् द् ध् न्  स्         दन्ताः
 प् फ् ब् भ् म् -               औष्ठो
६. इ ञ् ण्  न्  म् –          नासिका
अनुस्वार ()                   नासिका
व् कार का -                  दन्तौष्ठ
  -                         कण्ठ-तालु
10.   - कण्ठौष्ठम्
11.   - जिह्वामूलम्

वर्णों के उच्चारण स्थान
कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, नासिका, ओष्ठ आदि को वर्णों का उच्चारण स्थान कहते हैं। वर्णों का उच्चारण करने के लिए फेफड़ों से निकली निःश्वास वायु इन स्थानों को स्पर्श करती है। जिस वर्ण को मुख के जिस अंग की सहायता से बोला जाता है, उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं। कुछ वर्णों का उच्चारण एक साथ दो स्थानों से भी होता है। वर्णों के उच्चारण स्थानों का विभाजन निम्न रूप से किया गया है-

कण्ठ – ‘अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः’ अर्थात् अकार (अ, आ), क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) और विसर्ग (:) का उच्चारण स्थान कण्ठ होता है। कण्ठ से उच्चारण किये गये वर्ण ‘कन्ठ्य’ कहलाते हैं।)

तालु – ‘इचुयशानां तालु’ अर्थात् इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्), य् और श् का उच्चारण स्थान तालु है। तालु से उच्चारित वर्ण ‘तालव्य’ कहलाते हैं।

मूर्धा – ‘ऋटुरषाणां मूर्धा’ अर्थात् ऋ, ॠ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्), र् और ष् का उच्चारण स्थान मूर्धा है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘मूर्धन्य’ कहे जाते हैं।

ओष्ठौ – ‘उपूपध्मानीयानामोष्ठौ’ अर्थात् उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ, म्) तथा उपध्मानीय (प, फ) का उच्चारण स्थान ओष्ठ होते हैं। ये वर्ण ‘ओष्ठ्य’ कहलाते हैं।

दन्तः – ‘लृतुलसानां दन्ताः’ अर्थात् लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्), ल् और स् का उच्चारण स्थान दन्त होता है। दन्तर स्थान से उच्चारित वर्ण ‘दन्त्य’ कहलाते हैं।

नासिका – (1) ‘ञमङ्णनानां नासिका च’ अर्थात् ङ्, ञ्, ण्, न्, म् तथा अनुस्वार का उच्चारण स्थान नासिका है। इस स्थान से उच्चारित वर्ण ‘नासिक्य’ कहलाते हैं।

                 (2) नासिकाऽनुस्वारस्यं – अर्थात् अनुस्वार (ं) का उच्चारण स्थान नासिका है।

कण्ठतालु – ‘एदैतोः कण्ठतालु’ अर्थात् ए तथा ऐ का उच्चारण स्थान कण्ठतालु होता है। अत: ये वर्ण ‘कण्ठतालव्य’ कहे जाते हैं। अ, इ के संयोग से ए तथा अ, ए के संयोग से ऐ बनता है।

कण्ठोष्ठम् – ‘ओदौतोः कण्ठोष्ठम्’ अर्थात् ओ तथा औ का उच्चारण स्थान कण्ठोष्ठ होता है। अ + उ = ओ तथा अ + ओ = औ बनते हैं। अत: ये वर्ण कंठोष्ठ्य कहे जाते हैं।

दन्तोष्ठम् – ‘वकारस्य दन्तोष्ठम्’ अर्थात् व् का उच्चारण स्थान दन्तोष्ठ होता है। इस कारण ‘व्’ ‘दन्तोष्ठ्य’ कहलाता है। इसका उच्चारण करते समय जिह्वा दाँतों का स्पर्श करती है तथा ओष्ठ भी कुछ मुड़ते हैं।

जिह्वामूलम् – ‘जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम्’ अर्थात् जिह्वामूलीय (क, ख) का उच्चारण स्थान जिह्वामूल होता है।

उच्चारण स्थान बोधक चक्र 

उच्चारण स्थानस्वरस्पर्श व्यंजनअंतःस्थ व्यंजनऊष्म व्यंजनअयोगवाहसंज्ञा
कंठअ, आक्, ख्, ग्, घ्, ङ्:कन्ठ्य
तालुइ, ईच्, छ्, ज्, झ्, ञ्य्श्तालव्य
मूर्धाऋ, ॠट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्र्ष्मूर्धन्य
ओष्ठौउ, ऊप्, फ्, ब्, भ, म्प, फओष्ठ्य
दन्तःलृत्, थ्, द्, ध्, न्ल्स्दन्त्य
नासिकाङ्, ञ्, ण्, न्, म्ं, ँनासिक्य
कण्ठतालुए, ऐकण्ठतालव्य
कण्ठोष्ठम्ओ, औकंठोष्ठ्य
दन्तोष्ठम्व्दन्तोष्ठ्य
जिह्वामूलम्क, खजिह्वामूलीय
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About the Author

I am Bhanu prakash.I am a part time blogger and full time student.I tried to provide all content for free in my blogs

2 comments

  1. Bhut acha notes h I like very much handritten is recommended
  2. ये handritten नोट्स अप्रतिम ह
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